Kavita Gautam

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"कोरा कागज़"

"कोरा कागज़"


कोरा कागज कोरा न रहा,
इस पर तो सारा जहां लिखा ।

कोरा सा था ये कागज जब,
जब लिखा गया कुछ भी ना था ।

फिर भाव सजे कुछ शब्दों से,
कोरा कागज कोरा न रहा ।

कोरा तो है ये मानव मन,
जो लेकर ज्ञान बिसर जाए ।

ये कागज है कैसे कोरा,
इस पर तो भावों का सार समा जाए ।

प्रत्येक भाव से ना जाने,
कितने ही ग्रंथ लिखे जाएं ।

हर भाव लिखा, हर सार लिखा,
इस पर देखो क्या क्या न लिखा ।

मन का दर्पण भी इस पे लिखा,
जीवन का सार भी इस पे लिखा ।

सारे वेदों का ज्ञान लिखा,
इस पर ही तो विज्ञान लिखा ।

इस पर ही लिखी रिश्तों की कहानी,
कविताओं का सार भी इस पे लिखा ।

इस पर ही लिखी मां की ममता,
पिता का प्यार भी इस पे लिखा ।

भाई बहन के पावन रिश्ते का,
 अपनापन भी इस पे लिखा ।

प्रेमी युगल के भावों का,
उपसंहार भी इस पे लिखा ।

कोरा कागज कोरा न रहा,
इस पर तो सारा जहां लिखा ।।



स्वरचित/मौलिक/
कविता गौतम✍️

# लेखनी
# लेखनी कविता










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6 Comments

Swati chourasia

23-Sep-2021 09:08 PM

Very beautiful 👌👌

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Kavita Gautam

24-Sep-2021 02:07 PM

धन्यवाद आपका 🙏

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Zakirhusain Abbas Chougule

23-Sep-2021 07:50 PM

Nice

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Kavita Gautam

24-Sep-2021 02:08 PM

धन्यवाद आपका 🙏

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UDtheFriend

23-Sep-2021 06:34 PM

Beautiful

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Kavita Gautam

24-Sep-2021 02:08 PM

धन्यवाद आपका 🙏

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